कोर्स 7_गतिविधि 2 : विचार साझा करें

 प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया दोनों में प्रचलित विज्ञापनों को देखिए इनमें पुरूषों और महिलाओं को किस प्रकार चित्रित किया गया है और विज्ञापनों में उनके द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों का विश्लेषण करने का प्रयास कीजिए (संकेतः देखिए कि वे किन उत्पादों का प्रचार कर रहे हैं, और किस प्रकार की भूमिका निभा रहे हैं, इत्यादि)। अपने अवलोकनों को साझा कीजिए। 


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  1. प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया दोनों में प्रचलित विज्ञापनों को देखिए इनमें पुरूषों और महिलाओं को किस प्रकार चित्रित किया गया है

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    1. आधूनिकता के इस दौर पर प्रिन्ट और नॉन प्रिन्ट मीडिया दोनों में प्रचलित विज्ञापनों में पुरुषों और महिलाओं को समानता का दर्जा कुछ ही स्तर तक हो पाया है । अभी भी कुछ विज्ञापनों में भ्रमित रूढ़िवादिता स्पष्ट नजर आता है जिनमें महिलाओं और पुरुषों में असमानता दर्शाया जाता है।

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  2. प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया के प्रचलित विज्ञापनों में आज लिंग एवं जेंडर समानता देखी जाती है, लेकिन पुरुष स्वीकार्य है, महिला कुछ हद तक स्वीकार्य है, ट्रांसजेंडर बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। यह कड़वा यथार्थ एवं सामाजिक वास्तविकता है।

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  3. पुरुष और महिला जैविक रूप से समरूप हैं उनमें कोई भेद नहीं है| पुरुष और महिला अपना कार्य सामान्य रूप से कर सकते हैं| ट्रांसजेंडर समाज में स्वीकार्य नहीं है, ये दुर्भाग्य है| अत: इस मानसिकता को बंद कर देना चाहिए|

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  4. प्रिंट मीडिया में अधिकतर विज्ञापनों में महिलाओं से महिलाओं वाले विज्ञापन कराए जाते हैं और पुरुषों से पुरुषों वाले विज्ञापन कराए जाते हैं यह हमारे रूढ़िवादी सोच का परिणाम है।

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  5. पुरुष और महिला की जैविक भिन्नता उसके सामाजिक अस्तित्व को भी प्रभावित करती है | जहाँ तक प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया की बात है, वहाँ जेंडर असमानता स्पष्ट दृष्टिगत होती है | सौंदर्य-प्रसाधनों का विज्ञापन महिलाओं के द्वारा करवाया जाता है, जबकि शक्ति-प्रदर्शन तथा शारीरिक सुदृढ़ता वाले विज्ञापन पुरुषों के द्वारा करवाए जाते हैं | महिलाओं को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया गया है | वैसे अपवाद भी कई विज्ञापनों में नज़र आता है, जो संभवतः इस दिशा में आई जागरुकता का परिणाम है |

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  6. प्रिंट मीडिया में अधिकतर विज्ञापनों में लैंगिक विभेदीकरण दृष्टिगोचर होता है, यह हमारे रूढ़िवादी सोच का परिणाम है।

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  7. विज्ञापन हमारी रूचियों के अनुरूप ही दर्शाए जाते हैं. हम दिखावा करते हैं कि हम अब आधुनिक विचारों वाले हैं और समानता को बढ़ावा देना चाहते हैं परन्तु अभी ऐसा है नहीं इसी कारण से इस तरह के विज्ञापनों का प्रचलन है.

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  8. उसके सामाजिक अस्तित्व को भी प्रभावित करती है | जहाँ तक प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया की बात है, वहाँ जेंडर असमानता स्पष्ट दृष्टिगत होती है | सौंदर्य-प्रसाधनों का विज्ञापन महिलाओं के द्वारा करवाया जाता है, जबकि शक्ति-प्रदर्शन तथा शारीरिक सुदृढ़ता वाले विज्ञापन पुरुषों के द्वारा करवाए जाते हैं | महिलाओं को सौंदर्य का प्रतिमान

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  9. आजकल विज्ञापनों में चाहे वह प्रिंट मीडिया के विज्ञापन हो चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विज्ञापन, अक्सर महिलाओं को इनमें वरीयता दी जाती है, हॉ इसका यह मतलब नहीं कि पुरुषों से विज्ञापन कराए ही नहीं जाते, पुरुषों के वस्त्राभूषण आदि के विज्ञापन पुरुषों से ही कराए जाते हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि महिलाओं की सुंदरता व आकर्षण जनमानस को ज्यादा आकर्षित करते हैं।

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  10. प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में पुरुषों और महिलाओं को एक कुशल प्रचारक या ब्राण्ड अम्बेस्डर के रूप में दिखाया जाता है । महिलाएँ व पुरुष दोनों ही अपनी- अपनी मनमोहक अदाओं से ऐसे क्रिया- कलाप प्रदर्शित करते हैं कि उनके द्वारा विज्ञापिन उत्पादों का उपभोग करने के लिए लोग लालायित हो जाते हैं।

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  11. सौंदर्य-प्रसाधनों का विज्ञापन महिलाओं के द्वारा करवाया जाता है, जबकि शक्ति-प्रदर्शन तथा शारीरिक सुदृढ़ता वाले विज्ञापन पुरुषों के द्वारा करवाए जाते हैं | महिलाओं को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया गया है |

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    1. सौंदर्य-प्रसाधनों का विज्ञापन महिलाओं के द्वारा करवाया जाता है, जबकि शक्ति-प्रदर्शन तथा शारीरिक सुदृढ़ता वाले विज्ञापन पुरुषों के द्वारा करवाए जाते हैं | महिलाओं को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया गया है

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  12. पुरुष और महिला जैविक रूप से समरूप हैं उनमें कोई भेद नहीं है| पुरुष और महिला अपना कार्य सामान्य रूप से कर सकते हैं| ट्रांसजेंडर समाज में स्वीकार्य नहीं है, ये दुर्भाग्य है| यह कड़वा यथार्थ एवं सामाजिक वास्तविकता है।अत: इस मानसिकता को बंद कर देना चाहिए|

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  13. समाज में जितनी भी सौंदर्य प्रसाधनों का विज्ञापन महिलाओं द्वारा किया जाता है तथा शारीरिक सुदृढ़ता से संबंधित सभी विज्ञापन पुरुषों द्वारा किए जाते हैं

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  14. प्रिंट मीडिया में अधिकतर विज्ञापनों में लैंगिक विभेदीकरण दृष्टिगोचर होता है, यह हमारे रूढ़िवादी सोच का परिणाम है

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  15. सामान्यतः महिलाएँ अपने लिए प्रयोग होने वाली वस्तुओं का विज्ञापन अधिक करती हैं, इसके साथ साथ वे पुरुषों द्वारा प्रयोग होने वाली वस्तुओं का भी विज्ञापन करती हैं. परन्तु पुरुष पुरुषों द्वारा प्रयोग होने वाली वस्तुओं का ही विज्ञापन करना अधिक पसन्द करते हैं.

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  16. आज के वर्तमान परिपेक्ष्य मे महिलाओ की अपेक्षा पुरुष को अधिक प्रधानता दी जाती है। जबकि जेंडर समानता को महत्व दिया जाना चाहिए ।

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  17. आज के परिप्रेक्ष्य में प्रिन्ट और नान प्रिन्ट मीडिया में पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी लगभग समान है. बल्कि महिलाओं की भूमिका दिन प्रति दिन बढती जा रही है. सामाजिक समानता और लिंग भेद को कम कर रही है.

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  18. ह्मे स्त्री और पुरुषों मे भेद का व्यवहार करना गलत है.

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  19. बदलते परिवेश में मीडिया का महत्व बढ़ता जा रहा है इसलिए इस क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी समान है महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए और प्रयास करने चाहिए

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  20. यह विडंबना पूर्ण है कि विज्ञापनों में जेंडर संवेदी विषयों की प्रायः उपेक्षा होती है तथा इनमें अनजाने रुप से ही सही समाजिक रुढ़िवादी विचारों की ही अभिव्यक्ति हो जाती है । प्रशंसनीय विज्ञापनों की संख्या बहुत न्युन है । इस संबंध में कंपीटेंट रेगुलेटरी अथॉरिटी होनी चाहिए ।

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  21. विज्ञापनों में महिलाओं का आकर्षण बढ़ने के लिए उपयोग किया जता है . सामान्यतः पुरुषों के उपयोग वाली वस्तुओं में भी महिलाओं को दिखाया जाता है.

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